केंद्र सरकार के श्रम और मंहगाई विरोधी नीतियों के खिलाफ 17 सूत्री मांगों को लेकर देश भर के सभी श्रमिक संगठन और करोड़ों कर्मचारियों ने आज देशव्यापी भारत बंद का आह्वान किया
रांची : आज का दिन भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक अहम अध्याय जोड़ रहा है। देशभर के 25 करोड़ से ज्यादा कर्मचारी, मजदूर, किसान और संगठित-असंगठित क्षेत्र के श्रमिक अपनी एकजुटता का प्रदर्शन कर रहे हैं। यह भारत बंद कोई अचानक लिया गया फैसला नहीं है, बल्कि यह लंबे समय से दबे आक्रोश और उपेक्षा के खिलाफ एक चेतावनी है। जब मजदूर की आवाज़ सरकार की नीतियों में नहीं सुनी जाती, जब किसान की मांगें कागजों में दफन कर दी जाती हैं, जब कर्मचारियों की मेहनत का मोल कुचलने की कोशिश होती है, तब हड़ताल ही आखिरी हथियार बनती है। भारत बंद के पक्ष में कुछ ठोस तर्क हैं: नए श्रम संहिता (Labour Codes) में कई ऐसी प्रावधान हैं जिनसे मजदूरों की सुरक्षा, वेतन, काम के घंटे और यूनियन बनाने के अधिकारों पर सीधा आघात होता है। यह बंद उन नीतियों के खिलाफ लोकतांत्रिक असहमति का इज़हार है। महंगाई और निजीकरण:
पेट्रोल-डीजल से लेकर रसोई गैस तक सब महंगा हो गया है। आम आदमी की थाली छोटी होती जा रही है। वहीं, सरकारी उपक्रमों के निजीकरण ने लाखों कर्मचारियों की आजीविका पर संकट खड़ा कर दिया है। भारत बंद में इन मुद्दों को प्रमुखता दी गई है। किसानों की मांगें: किसानों ने बार-बार अपनी फसल की वाजिब कीमत, कर्जमाफी और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी की मांग की है। आज का बंद किसानों और मजदूरों की साझा पीड़ा की आवाज़ है। लोकतांत्रिक अधिकार:
हड़ताल और बंद नागरिकों का संवैधानिक अधिकार हैं। यह शांतिपूर्ण प्रतिरोध ही है जो सत्ता को याद दिलाता है कि जनता कोई गूंगी-बहरी भीड़ नहीं, जागरूक नागरिक हैं। एकजुटता की मिसाल:
इस बंद में रेलवे, परिवहन, बैंकिंग, बीमा, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे कई क्षेत्रों के कर्मचारी शामिल हुए हैं। यह दिखाता है कि मुद्दे कितने व्यापक हैं और संघर्ष कितना जरूरी है।
भारत बंद से हो रही असुविधा को केवल परेशानी मानना गलत होगा। यह असुविधा दरअसल उस व्यवस्था के प्रति रोष की अभिव्यक्ति है, जो मेहनतकश को अनदेखा करती आई है। यह बंद याद दिला रहा है कि भारत की रीढ़ मजदूर और किसान ही हैं – और अगर उनकी आवाज़ नहीं सुनी गई तो व्यवस्था का पहिया रुक सकता है। आज का बंद हमें सोचने पर मजबूर करता है कि विकास सिर्फ आंकड़ों में नहीं, बल्कि उन हाथों में होना चाहिए जो इसे अपने पसीने से रचते हैं। भारत बंद सिर्फ एक दिन की हड़ताल नहीं, यह एक चेतावनी है – मेहनतकश को कमजोर मत समझिए। उसकी चुप्पी स्थायी नहीं होती। जब वह उठ खड़ा होता है, तो व्यवस्था की नींव हिल जाती है, इस मौक़े पर सुधीर गोप,प्रदेश अध्यक्ष,श्रमिक प्रकोष्ठ, ,अनीता यादव, प्रदेश उपाध्यक्ष,, रंजन यादव,युवा प्रदेश अध्यक्ष,
सहबाज अहमद अध्यक्ष रांची महानगर, झारखंड प्रदेश से प्रणय कुमार बबलू जी,मनोज अग्रवाल जी, संतोष प्रसाद जी, सब्बर फातमी जी , नूर मेराज ,अरविंद, परवेज़ आलम , मोहम्मद अफरोज , अरुण कुमार, प्रवक्ता क्षितिज मिश्रा समेत कई लोग मौजूद थे.