पासरनाथ को लेकर आदिवासियों ने की आर-पार की लड़ाई का एलान

News झारखण्ड न्यूज़ रांची न्यूज़ राज-नीति
Spread the love

झामुमो विधायक और झारखंड बचाओ मोर्चा के मुख्य संयोजक लोबिन हेंब्रम ने पासरनाथ को लेकर आर-आर की लड़ाई का एलान कर दिया है. इस मामले को लेकर आदिवासी समाज टस से मस होने को तैयार नहीं है. मोर्चा द्वारा आयोजित एक प्रेस वार्ता में उन्होंने कहा कि इस मामले में राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों का निर्णय गलत है. पारसनाथ में आदिवासियों का धर्म गुरु मरांग बुरू और जहेर स्थल है. जहां सदियों से पूजा-अर्चना करते आए हैं. कुछ सदी पहले एक जैन मुनी वहां तप करने आए, इसके बाद उनका वहां निधन हो गया. इसके बाद उनका वहीं समाधि बना दी गई. इसका मतलब यह नहीं है कि पूरा पारसनाथ जैनियों का हो गया. इस मामले में राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों गलत दिशा में चल रही है. दोनों का निर्णय ही पूरी तरह गलत है. इसलिए अपने धरोहर को बचाने के लिए आर-पार की लड़ाई होगी. इसको लेकर 10 जनवरी को पारसनाथ पर पूरे देश के आदिवासियों का जुटान होगा और सभा होगी. इसके बाद 25 जनवरी को इसको लेकर बिरसा मुंडा की धरती उलिहातू में एक दिवसीय भूख हड़ताल होगी. इस मौके पर नरेश मुर्मू, पीसी मुर्मू, अजय उरांव, सुशांतो मुखर्जी, एलएन उरांव, निरंजना हेरेंज टोप्पो सहित कई उपस्थित थे.
आदिवासी ही हैं इस देश के मूलनिवासी, जंगल ही इनका आश्रय
इस मौके पर पीसी मुर्मू और एलएनल उरांव ने कहा कि सच है कि आदिवासी इस देश के मूलनिवासी हैं. आदिवासियों के आने के बाद हजारों साल बाद आर्य आए हैं. यह आदिवासी जंगलों और पहाड़ी इलाकों में रह रहे थे. उनका भोजन जंगली जानवर थे, जिनका वे एक ही स्थान पर शिकार किया करते थे. वे पत्तों और गुफाओं से बने घर में निवास कर रहे थे. वे भारत में आर्य के आगमन से हजारों साल पहले बहुत शांति से रह रहे थे. सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि आदिवासी भारत के “मूल निवासी” हैं. उनकी जीवन शैली अन्य समुदायों से आज तक अलग है. बिहार, हजारीबाग गजट 1956 में उल्लेख किया गया है कि मारंग बुरु / पारसनाथ संताल समुदाय का पव‍ित्र स्थान है. आदिवासी लोग प्रकृति की पूजा कर रहे हैं, जैसे पेड़-नदियां, जंगल, चट्टानें, झरने, सूरज आदि‍. मारांग बुरु जिसे अब पारसनाथ पहाड़ी कहा जाता है. आदिवासी संताल समुदाय का सबसे पुराना पूजा स्थल है, जिसे पहाड़ियों की चोटी पर जुग जहर कहा जाता है. संथाल अपने जाहेर आयो, मारंगबुरु, मोरेको-तुर्युको, समुदाय के पूर्वज और अन्य भगवान की पूजा कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट के एक सहायक/साक्ष्य दस्तावेज हैं. जिसमें घोषित किया गया है कि मारंग बुरु/पारसनाथ आदिवासी संताल समुदाय का एक पवित्र/पूजा स्थल है. हर साल फागुन मास के पहले दिन हजारों आदिवासी लोग पूजा करते हैं. जहां बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, भारत और अन्य देशों के संथाल लोग उसी के लिए पूजा करने आते हैं. इसलिए यह आदिवासियों का पवित्र स्थल है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *