मनीष कश्यप केस को लेकर 11 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. अब इस मामले में मोदी सरकार की भी एंट्री हो गई है. सुनवाई के दौरान कोर्ट के अंदर क्या-क्या हुआ और कोर्ट ने क्या कहा? आइए जानते हैं.
जस्टिस कृष्ण मुरारी और संजय कारोल मनीष कश्यप की याचिका पर सुनवाई कर रहे थे. सुनवाई के दौरान जज ने कहा कि अलग-अलग राज्यों में दर्ज FIR को क्लब किया जाए. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ दवे ने मनीष का पक्ष रखा. वहीं, तमिलनाडु सरकार की तरफ से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने दलील दी.
सुनवाई में मनीष कश्यप के वकील सिद्धार्थ दवे ने कहा,
“तमिलनाडु में दो FIR दर्ज की गईं. बिहार सरकार ने भी एक मामला दर्ज किया और बेल देने से मना कर दिया. एक मामले पर दर्जनों FIR दर्ज करना सही नहीं है. ऐसा ही अर्नब गोस्वामी के साथ भी हुआ था.”
इसी तर्क के आधार पर उन्होंने कहा कि बिहार में दर्ज FIR को ही प्रमुख केस बनाया जाए. सुनवाई के दौरान मनीष कश्यप ने कहा,
“मुझे तमिलनाडु ले जाया गया, जहां मुझे उनकी भाषा तक समझ नहीं आती.”
वहीं, तमिलनाडु सरकार का पक्ष रखते हुए कपिल सिब्बल ने जवाब दिया कि फेक न्यूज फैलाना, जिसकी वजह से लोगों की मौत तक हुई, कोई छोटी-मोटी बात नहीं है. उन्होंने कहा,
“मनीष कश्यप की याचिका पर हमें रिप्लाई फाइल करने दीजिए. वैसे भी उन्हें NSA के तहत हिरासत में लिया गया है. वो केस अलग है और अपराध भी अलग है.”
ये कहते हुए कपिल सिब्बल ने कोर्ट से 2 हफ्ते का समय मांगा ताकि वो जवाब फाइल कर पाएं. जवाब में कोर्ट ने कहा कि ठीक है, लेकिन तब तक उनके खिलाफ कोई सख्त एक्शन ना लें. इसके बाद मनीष के वकील ने तुरंत आपत्ति जताते हुए कहा,
“2 हफ्ते बहुत लंबा वक्त होता है. मनीष को रोज परेशान किया जा रहा है. बिहार में ज़मानत लेने के लिए उन्हें तमिलनाडु में कैद किया गया है. और NSA कैसे लगाया जा सकता है? ये सरासर गलत है.”
इतना सुनते ही जस्टिस संजय कारोल ने कहा कि वो भी बिहार से आने वाले प्रवासी मजदूर हैं. ज़ाहिर है ये बात उन्होंने हल्के-फुल्के अंदाज़ में ही कही. इसके बाद कोर्ट ने कपिल सिब्बल को 10 दिन का समय दिया ताकि वो सरकार का पक्ष रखते हुए जवाब दाखिल करें. मनीष कश्यप की FIR एकीकरण वाली मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, बिहार सरकार और तमिलनाडु की स्टालिन सरकार से जवाब तलब किया है.