सीएम ने कहा कि सरना आदिवासी धर्म कोड का प्रस्ताव तो झारखंड विधानसभा से पारित करा लिया गया है, लेकिन अभी कई लड़ाइयां लड़नी है। केंद्र सरकार से इसे हर हाल में लागू कराना है ताकि आगामी जनगणना में इसे शामिल किया जा सके। इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए विस्तृत कार्य योजना तैयार कर ली है। आदिवासी सरना समाज को उसका हक और अधिकार मिले, इसके लिए हमारे कदम कभी नहीं रुके हैं। हम आगे बढ़ते ही रहेंगे।समाज को एकजुट करने का काम हो सीएम ने कहा कि आदिवासी समाज को देश के स्तर पर एकजुट होने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि धीरे- धीरे इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। बदलते वक्त के साथ आदिवासी समाज का जनप्रतिनिधित्व पंचायत से देश के स्तर पर बढ़ रहा है। यह एक सुखद संदेश है। अन्य राज्यों में भी तेज करेंगे आंदोलन करेंगे।
सीएम हेमंत ने कहा, ‘आदिवासी कभी भी हिन्दू नहीं थे, न हैं. इसमें कोई कंफ्यूजन नहीं है. हमारा सबकुछ अलग है.’सोरेन ने यह भी कहा कि हम अलग हैं, इसी वजह से हम आदिवासी में गिने जाते हैं. ‘हम प्रकृति पूजक हैं. अभी भी हम उस जगह तक नहीं पहुंच पाए हैं जहां ऐसे प्रोपेगेंडा को पकड़ पाएं. ट्राइबलों को मान्यता नहीं मिल रही है, कि ये ट्राइबल है. आजादी के बाद से हाल तक में कभी आदिवासी, तो कभी इंडीजिनस के नाम से जाना गया. ‘मुख्यमंत्री सोरेन ने यह भी कहा, ‘जनगणना में हम अदर्स में गिने जाते थे, इस बार तो केंद्र सरकार ने उस कॉलम को भी हटाने की तैयारी कर ली है. इसी वजह से हमने अपने लिए अलग धर्म कोड की मांग की है. ताकि हम अपनी परंपरा, संस्कृति को बचा सकें.’
अब सवाल उठता है कि आदिवासी और उनके धर्म पर इस वक्त इतनी बहस क्यों? क्या ये पहचान की लड़ाई है? क्या उनके पहचान के संकट को अलग धर्म की मांग से बल मिल सकता है? आखिर झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने पहली बार इतना खुलकर क्यों कहा कि आदिवासी कभी हिन्दू नहीं थे?
बीते साल 10 नवंबर को हेमंत सरकार ने विधानसभा में सरना धर्मकोड बिल पारित किया. इसके बाद उसे केंद्र सरकार के पास भेज दिया गया. कई राज्यों से आदिवासी संगठन और नेता अलग धर्मकोड की मांग पर सहमति जता चुके हैं.भारत में 750 से अधिक जनजातियों निवास करती हैं और आदिवासियत उनकी साझी अस्मिता रही है। उनकी आबादी 12 करोड़ से अधिक है। फिर उनके लिए जनगणना प्रपत्र में पृथक धर्म कोड का प्रावधान क्यों नहीं है।
हम जानते हैं कि मानव समुदाय की आंतरिक और बाह्य दुनिया दोनों धर्म से सिंचित रहती हैं। मनुष्य की हर आचरण और विचार पर धर्म का गहरा असर दिखाई पड़ता है। धर्म मनुष्यों, समुदायों और राष्ट्रों के बीच टकराव का कारण भी बनता है। कई बार यह टकराव नस्ल-जाति के साथ जुड़कर दुनिया को तबाह कर देता है। हर किसी की धार्मिक पहचान है। दुनिया की तमाम नृ-जातियों की तरह आदिवासियों की भी मुख्तसर धार्मिक पहचान है।दुनिया में समुदायों की पहचान धर्म और भाषा से मुकम्मल होती है। धर्म को जीवन का उद्देश्य बताया गया है। इसी से समुदाय विशेष का आचरण, कर्तव्य और नैतिकता तय होती है। यही कारण है कि इसे पवित्रता से भी जोड़ा जाता है। हर धर्म- समुदाय में पवित्रता से जुड़े कुछ स्थान हैं। तमाम समुदाय के लोग पवित्रता कायम रखने के लिए पूजा और भक्ति का इस्तेमाल करते हैं।
नृ-जातियों और भारत की प्राकृतिक संपदा की उपलब्धता के समीकरण को तैयार करने का पहला उपक्रम ब्रिटिश भारत में सन् 1872 में किया गया। ब्रिटिश भारत में ही सन् 1881 विधिवत रूप से जनगणना की शुरुआत हुई। तब से लेकर अब तक हर दस साल के अंतराल पर भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन जनगणना का कार्य संपन्न किया जाता है। जनगणना का इतिहास दिलचस्प है। जनगणना का संबंध कई अन्य मामलों से भी जुड़ता है, जैसे संसाधन और आबादी का रिश्ता और राष्ट्र और नागरिकता का रिश्ता। इसलिए इससे किसी राष्ट्र की भौगोलिक सीमाओं में रहने वाले लोगों की संख्या का केवल आकलन ही नहीं होता, बल्कि उनकी पहचान भी मुकम्मल होती है। इतना ही नहीं, कभी-कभी इसके माध्यम से किसी समुदाय विशेष की पहचान के मसले को उलझाया भी जाता है (आदिवासियों के साथ ऐसा ही हो रहा है)।
आदिवासियों की धार्मिक पहचान वाले कोड को हटा दिया गया था। यह समझना जरूरी है कि क्या आदिवासियों की कोई धार्मिक पहचान है अथवा नहीं। अगर है तो उन्हें धार्मिक पहचान से वंचित करने की कोशिश को कब अमल में लाया गया?
भारत में कोयतुरों अर्थात गोंडों की बड़ी आबादी है। कोयतुरों की सांस्कृतिक पहचान और दर्शन को “कोया पुनेम” कहा जाता है। इसमें पारी कुपार लिंगो व जंगो रायतार की मान्यताएं हैं। साथ ही, इसमें संभू सेक का वर्णन है जो मानव सभ्यता के विकास से संबंधित है। जिस तरह सनातन धर्म की संपूर्ण पवित्रता ओम में और इस्लाम की संपूर्ण पवित्रता 786 में अंतर समाहित है, उसी तरह “कोया पुनेम ” की पवित्र संख्या 750 है। इसमें पहले अंक सात का अभिप्राय सात पवित्र गुणों से है। ये सात गुण हैं – प्रेम, ज्ञान, पवित्रता, सुख, शांति, आनंद और शक्ति। जबकि दूसरे अंक पांच का मतलब पांच तत्वों से है, जिनसे सृष्टि का निर्माण हुआ है – आकाश, धरती, पानी, आग और हवा।ब्रिटिश सरकार द्वारा कराई गई पहली जनगणना में आदिवासियों को ‘एबोरिजिनल ट्राइब’ के रूप में दर्ज किया गया। इसके बाद की जनगणना में आदिवासियों के लिए अलग से धर्म कोड का जिक्र नही था। अन्य में डाला गया यह अन्य में डाला गया।सभी आदिवासियों में रहन-सहन और आचरण के विधि-विधान मौजूद हैं। उनका अपना धर्म है। फिर उनकी धार्मिक पहचान से उन्हें वंचित क्यों किया जा रहा है? यह सवाल विचारणीय है।
एक बार फिर जनगणना के इतिहास पर नजर डालते हैं। सन् 1951 की जनगणना के कुछ पहलुओं पर ध्यान देना जरूरी है। इस जनगणना के समय जनगणना कर्मियों के लिए एक नियमावली जारी की गई थी। इस नियमावली के अंतर्गत भारत के लोगों के ‘राष्ट्र और धर्म’ वाले कॉलम को भरने के विषय में बताया गया था कि देश के लोगों का राष्ट्र भारत होगा और उनकी आस्था और पहचान के आधार पर उन्हें धार्मिक सूचकांकों (कोड) में से किसी एक में स्थान देना होगा।
