जनवरी का महीना था और 21 साल के विजय राज (बदला हुआ नाम) बहुत परेशान थे.
वो दो बार नीट की परीक्षा में नाकाम हो चुके थे और मई में होने वाली परीक्षा में उन्हें एक और असफलता का डर था.
लंबे समय से उनकी परेशानी का विषय था फ़िजिक्स. इसके अलावा कोचिंग इंस्टीट्यूट के इंटरनल टेस्ट में खराब प्रदर्शन ने भी उनके आत्मविश्वास पर असर डाला था.
एक किसान परिवार से आने वाले विजय तनाव, चिंता, छाती में दर्द से परेशान थे. कई बार मुश्किलों से ध्यान हटाने के लिए वो मोबाइल पर रील्स और शॉर्ट्स देखते, जिससे उनका और ज़्यादा वक्त बर्बाद होता. माता-पिता निराश न हो जाएं, इसके लिए कई बार उन्होंने घर में टेस्ट में खराब प्रदर्शन को लेकर झूठ बोला.
कोटा में सालों पढ़ाई कर चुके विजय ने कहा, “मानसिक दबाव की स्थिति में पहली बार मुझे आत्महत्या का विचार आया. मैंने इस बारे में अपने माता-पिता को नहीं बताया. मैं नहीं चाहता था कि वो परेशान हों.”
हालात इतने खराब हुए कि एक बार तो आत्महत्या के बेहद करीब आ गए.
उन्होंने कहा, “ऐसा लगा कि मेरे पास कोई विकल्प नहीं हैं. लगा कि मैंने अपने घरवालों का पैसा बर्बाद कर दिया, उनकी इज़्ज़त गिरा दी.” नीट में वो तीसरी बार भी नाकाम रहे.
बच्चों का किसी बड़े इंजीनियरिंग या मेडिकल कॉलेज में एडमिशन भारतीय परिवारों के लिए गर्व की बात होती है और नाकामी को नीची नज़र से देखा जाता है.