आप रजाई में ह‍िटर चलाकर सो रहे ‘साहब’, इन्‍हें बेघर कर खुले आसमान के नीचे छोड़ा

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Ranchi : बीते दिनों रांची के ओवरब्रज के पास बसे लोहरा कोचा बस्ती में रेलवे ने अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाया था. ज‍िसमें कई लोगों के आशियाने को तोड़ दिया गया. जिससे वहां बसे लगभग 40 दलित-आदिवासी परिवार बेघर हो गए. अत‍िक्रमण हटाने के एक सप्ताह बाद भी अधिकांश परिवार वहीं पर या फिर रोड किनारे इस हाड़ कंपाती ठंड में खुले आसमान के नीचे रात गुजारने को मजबूर हैं. शुक्रवार को झारखंड जनाधिकार महासभा के प्रतिनिधिमंडल बेघर लोगों से मुलाकात कर मामले की जानकारी ली और कहा कि एक ओर सुप्रीम कोर्ट हल्द्वानी, उत्तराखंड में रेलवे द्वारा अतिक्रमण हटाने के नाम पर लोगों को बेघर करने पर रोक लगा दी. वहीं दूसरी ओर रांची में बेघर कर लोगों को इस हाड़ कंपाती ठंड में खुले आसमान के नीचे छोड़ दिया है.

ठंड में बेघर हुए गरीबों के लिए कोई नहीं आया सामने
प्रतिनिधिमंडल का कहना है कि लोहरा कोचा में लोग 50-60 साल से बसे हैं. कई परिवार तीन पीढ़ी से यहीं रह रहे थे. रोजगार और काम की तलाश में आए लोग रेलवे लाइन के किनारे थोड़ी सी जमीन पर बस गए. सोचने की बात है कि यहां लगभग सभी परिवारों के पास राशन कार्ड, आधार व वोटर कार्ड है, जिसपर इस बस्ती का ही पता चढ़ा हुआ है. लोगों के घर में बिजली का कनेक्शन भी था. यहां बसे अधिकांश लोग दैनिक मजदूरी पर निर्भर हैं. लगभग एक महीने पहले हटिया व बिरसा चौक के आसपास भी रेलवे द्वारा लोगों को बेघर किया गया था. एक ओर राज्य के सत्ताधारी दल और विपक्ष आदिवासी-दलित-पिछड़े व गरीबों के नाम की राजनीति करती है. वहीं दूसरी ओर, ठंंड में बेघर हुए गरीब आदिवासी-दलित-पिछड़ों के लिए कोई सामने नहीं आए.

राज्य सरकार और केंद्र सरकार से की यह मांग
लोहरा कोचा समेत अन्य क्षेत्रों में रेलवे द्वारा बेघर किए गए लोगों को तुरंत मूलभूत सुविधाओं के साथ वैकल्पिक जमीन व घर दिया जाए. साथ ही इस हिंसा के एवज में उन्हें मुआवजा दिया जाए.
सभी परिवारों को तुरंत ठंड से राहत के लिए कंबल, गर्म कपड़े, टेंट आदि दिया जाए.
ठंड में लोगों को बेघर करने के लिए ज‍िम्मेवार पदाधिकारियों के विरुद्ध न्यायसंगत कार्रवाई की जाए.

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