Ranchi : देशभर के तमाम विपक्षी पार्टी आज यह खुलकर आरोप लगा रहे हैं कि भाजपा ने जिस तरह से संवैधानिक संस्थाओं एवं सार्वजनिक एजेंसियों का दुरुपयोग किया है, वो बेहद शर्मनाक है. भाजपा मुख्यालय ने जिस तरीके से सरकारी संस्थाओं पर कब्जा जमा लिया है, देश के लोकतंत्र में ऐसा कभी नहीं देखा गया. ऐसे सवाल उठाने वाले विपक्षी नेताओं (विशेषकर क्षेत्रीय दलों) में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का नाम सबसे पहले आएगा.
आज स्थिति यह है कि अगर किसी भी व्यक्ति पर टैक्स चोरी, घोखाधड़ी, मनी लॉड्रिंग का कोई भी आरोप लगे तो तत्काल भाजपा की शऱण में चल जाए तो उसके सारे पार धुल जाएंगे. ऐसा करने से इस बात का चांस बढ़ जाता है कि तहकीकात रुक जाये या इतनी धीमी हो जाए की आप के उपर लटक रही खतरे की घंटी न बजे. हेमंत सोरेन भी लगातार इस बात को प्रमुखता से उठाते रहे हैं.
भाजपा नेताओं ने भ्रष्टाचार से समझौता कर लिया है. कम से कम झारखंड में तो यही लगता है. जिस भाजपा ने मधु कोड़ा और उनके सहयोगियों द्वारा किये गए घोटाले को उजागर किया, उसी घोटाले के एक कथित रूप से मुख्य आरोपी को पार्टी में शामिल करा लिया. हम बात कर रहे हैं भानु प्रताप शाही की. आज झारखंड सहित देशभर के कई राजनेताओं के उदाहरण भरे हुए हैं, जो भाजपा में जाते ही अपने पाप को धुलने की बात सच साबित करते है.
2006 से जनवरी 2020 तक के बाबूलाल मरांडी सारे पाप भाजपा में शामिल होते ही धुल गए| बात सबसे पहले झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की. कभी खुद को आरएसएस और भाजपा के कट्टर बंधु और प्रदीप ऐसे नेता जो अपने पाप नहीं दो धुल पाए.झाऱखंड की राजनीति में पाप नहीं धो पाने वाले में दो नेताओं के नाम भी काफी चर्चा में है. पहला बंधु तिर्की और दूसरा प्रदीप यादव. दोनों ही नेता कभी जेवीएम में रहते हुए बाबूलाल मरांडी के प्रमुख सहयोगी रहे थे. लेकिन जब बाबूलाल ने भाजपा की सदस्यता ली, तो बंधु और प्रदीप कांग्रेस में शामिल हो गए. बाद में मात्र 6 लाख 28 हजार 698 रुपये अधिक आय से संपत्ति अर्जित करने के आरोप में बंधु की विधायकी चली गयी. वहीं, प्रदीप यादव के घर तक इनकम टैक्स की टीम पहुंच गयी है. प्रदेश के राजनीतिक जानकारों की मानें, तो अगर दोनों नेता बाबूलाल की तरह भाजपा में शामिल होते, तो शायद उनके साथ आज जैसी स्थिति नही बनती.
भानु प्रताप पर दवा घोटाला का आरोप भाजपा ने लगाया, लेकिन आज पाक साफ है.
बात भाजपा विधायक भानु प्रताप शाही की. झाऱखंड की मधु कोड़ा सरकार में कई सहयोगियों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा. भानु प्रताप भी इसके आरोपी बनाये गए. लेकिन न केवल उसे 2019 के विधानसभा चुनाव के पहले भाजपा में शामिल कराया गया, बल्कि टिकट देकर आरोपी होने के सर्टिफिकेट से मुक्त कर दिया गया. आज भानु प्रताप शाही प्रदेश भाजपा के गुणगान करते नहीं थकते. यानी भाजपा में जाते ही भानु प्रताप का सारा पाप धुल गया.
अब बात अन्य राज्यों के नेताओं की, जिनके पाप धुल गए.
पहला – हेमंत बिस्वा सरमा की.
सभी जानते हैं कि असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा कभी कांग्रेस के नेता थे. हेमंत बिस्वा सरमा के उपर लुइस बर्गर नाम की कंपनी से घूस लेने के कथित आरोप लगे. इसपर असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने सीआईडी जांच स्थापित की. हेमंत बिस्वा पर सारदा पोंजी योजना को लेकर भी सवाल उठे थे. 2015 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले आए. उसके बाद इस मामले की चर्चा सुनाई नहीं दे रही है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो यहां तक दावा किया था कि उनके खिलाफ हेमंत बिस्वा सरमा के खिलाफ काफी सबूत है. वह प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह को चुनौती दे रही है कि हो सके तो उनको गिरफ्तार कराए. लेकिन उनके दावे का भी कोई असर नहीं हुआ.
दूसरा – मुकूल रॉय की.
इसी तरह तृणमूल कांग्रेस के बड़े कद्दावर नेता रहे मुकुल रॉय पर सारदा स्कैम का आरोप लगा. भाजपा इसे लेकर पश्चिम बंगाल में हो-हल्ला मचाते रही. लेकिन जैसे ही मुकुल रॉय भाजपा में गए, सारे आरोप खत्म. सारे पाप धुल गए. हालांकि मुकुल रॉय वापस तृणमूल कांग्रेस में आ गए.